Saturday 26 January 2013

Republic Day

धुंधला गणतंत्र  






ये कहा हे आज देश मेरा
बहुत धुंधला सा हे गणतंत्र मेरा 
सब भाती भाती के हे लोग यहाँ 
पर खुद से सबको हे भेद यहाँ 
चलती नही परिवर्तन की आंधी हे 
क्यों की मजबूरी का नाम गाँधी हे 
रेंग रेंग के बढता हे देश मेरा 
बहुत धुंधला सा हे गणतंत्र मेरा 

राजनीती का खेल हे सारा 
गटबंधन का मेल हे सारा 
सरकार सिर्फ नेताओ से चलती हे 
आम जनता की यहाँ कहा कोई गिन्ती हे 
कानून पैसे की बोली बोलता हे 
नेताओ के सामने अपनी पतलून खोलता हे 
तिल तिल मरता हे देश मेरा 
बहुत धुंधला सा हे गणतंत्र मेरा

नारी का नही हे मोल यहाँ 
नैतिकता का हे बस खोल यहाँ 
रातो को माँ बहुत घबडाती हे 
क्यों की सुरक्षित बेटिया घर नही आती हे 
इंसान यहाँ कायरो सा जिगर रखता हे 
और कहता हे इस देश का कुछ नही हो सकता हे 
डर डर के जीता हे देश मेरा 
 बहुत धुंधला सा हे गणतंत्र मेरा

मना रहे हे गणतंत्र इस देश का 
हर इंसान हे स्वतंत्र इस देश का 
अब भी कुछ आँखों में उम्मीद बाकि हे 
अब आना देश का बदलाव बाकि हे 
आज भी इसकी मिट्टी से वही महक आती हे 
कुछ कर जाये इसके लिए ये अपना क़र्ज़ चुकती हे 
सर उठा कर जीना चाहता हे देश मेरा 
सबसे प्यारा हो गणतंत्र मेरा  
 

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